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ज्ञान मूर्ति
ज्ञान के दाता हे मार्ग प्रकाशक
अज्ञानता के महाविनाशक
भटको को तुम राह दिखाते
सत सत नमन तुम्हें, हे ज्ञान ज्योति प्रकाशक।।

राष्ट्र के रक्षक सच्चे सेवक
निश्चल सेवा तेरा समर्पण
ज्ञान का देते दान सभी को
हो वास्तविकता तुम ही तो दर्पण।।

निस्वार्थ सेवा को धर्म जो माने
करते एकता, अखंडता में सब कुछ अर्पण
सद्भावना की जोत सदा जगाकर
विधार्थियों में कराते गहन ज्ञान का समागम।।

स्वाभिमान के पूजक अभिमान के भक्षक
सभी जीवन की तुम ही जरुरत
हो तप, त्याग बलिदान की साक्षात मूर्ति
सत सत नमन तुम्हें, हे राष्ट्र आराधक।।