...

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तुम

सुनो

तुमसे कहने को सोची गयी बातें
आज कल जुबां तक नहीं आ पाती

तुम्हारे गीले बालों से टपकती बूँदे
जिस तरह बाथरूम के शीशे से कुछ समय बाद
भाप हो जाती है

कुछ ऐसे ही मेरे जज़्बात है

जो मोबइल स्क्रीन की चमक में
कभी धुंधली पड़ जाती है

तो कभी कागज़ की लकीरों के बीच
खो जाती है

इसलिए

मेरे कमरे की सीलन में दबी
मेरी खामोशियाँ
सुन लोगे ना?


© Mystic Monk