...

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प्रेम का शाश्वत स्वरूप
सुनो....!
जब कभी भी मैं लिखती हूंँ प्रेम
तो आप ही होते हो
प्रेम का साक्षात रूप...!
प्रेम का विशुद्ध,शाश्वत स्वरूप..!

आप निराकार निर्गुण हो,
सृष्टि में सर्वथा समर्थ हो!!

कुंदन सा समर्पित प्रेम..!
आपसे बढ़कर कौन जानेगा उसे....?

पत्नी के अपमान का
दंश न झेल पाना
पत्नी के मृत देह को कंधे पर लाद
सृष्टि अनंत घूम जाना...!
और किसी के बस की कहांँ..?

पत्नी के लिए प्रेम की
पराकाष्ठा तक पहुंचना..!
और कौन कर सकता है...?

विशुद्ध प्रेम सती के लिए..!
विशुद्ध प्रेम पार्वती के लिए..!
आप ही समर्थ हैं,
त्रिलोक के नाथ शिव शंकर!!

सृष्टि का संपूर्ण प्रेम तत्व
आप ही में समाया है!
आप ही संपूर्ण प्रेम हो..!
© "मनु"