...

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आसमान में...
समंदर किनारे मैं तकता हूं आसमान में।
जैसे कहीं से, तुम देख रही हो आसमान में।

बातें करता हूं तुमसे समंदर किनारे मैं,
सोचता हूं हम है तो एक ही जहान में।

हंसता हूं एक टिमटिमाता तारा देखकर,
जैसे मुस्कुरा रही हो तुम आसमान में।

लहरों की पुकार संग जब कहता हूं तुम प्यार हो,
लगता है जैसे कर रहा हूं इश्क का ऐलान मैं।

सोचता हूं एक दफा अनजान-सा वो चेहरा तेरा,
जैसे चांद कर रहा हो तबस्सुम आसमान में।

फिर हो जाती हो आंखों से ओझल तुम,
ऐसे जैसे हूं कोई अजनबी अनजान मैं।

समंदर किनारे मैं तकता हूं आसमान में।
जैसे कहीं से, तुम देख रही हो आसमान में।

© Rahul Raghav