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स्पीड
जैसे बच्चा घर में बड़ा है होता,
गाड़ी चलाने की उसमें चाह पनपती है,
पिता के मन में भी उसकी पसंद की,
बाइक देने की चाह जगने लगती है।
फिर एक दिन आ जाता है जब,
पिता उसे अचंभित कर देते हैं,
उसकी पसंदीदा हौंडा की बाइक,
की चाबी उसके हाथों पर रख देते हैं।
क्या जरूरत इस बाइक की अभी,
इंजीनियरिंग अभी इसे करवाना है,
इतने पैसे क्यों खर्च दिए माँ पूछती,
बेटी की शादी भी तो करवाना है।
पिता आँख मार इशारा करता,
चुप रहो है ये खुशी का मौका,
बहन खुशी से फूली नहीं समाती,
भाई को मिला जो बाइक का तोहफा।
बेटा खुशी से फुला नहीं सामाता,
बस बाइक देख पिता को गले लगाता है।
बेटा! ध्यान से संभाल कर चलाना,
पिता बच्चे को इतना ही समझाता है।
फिर कॉलेज जाना हो या दूध लाने,
कुछ काम हो या बस फिरकी लगाने,
फुर्र से बाइक निकलती उसकी,
लगा वो दुनिया को ठेंगा दिखाने।
कभी 100 तो कभी 120 पर जाता,
कभी कभी तो हेलमेट भी नहीं लगाता,
तू बहुत डरता है फट्टू कहीं का,
दोस्तों को कहता गर कोई उसे समझाता।
इस तेजी में तो जिंदगी का मजा है,
क्या सुहानी देखो लगती ये हवा है,
सब मेरे पीछे, मैं रहा सबसे आगे,
दुनिया में मुझसे तेज अब कोई कहाँ है।
विधि का विधान भी यही तो बतलाता है,
एक दिन हर अति का अंत हो जाता है,
बस एक दिन उसकी ब्रेक नहीं लग पाती,
टूटी बाइक लिए एम्बुलेंस में घर आता है।
खून से लतपथ लाल को देख,
माँ हो जाती बिल्कुल जड़वत सी,
पिता हौले आवाज देकर उठाता बच्चे को,
आंखों में लिए आंसू, गले में भारी सिसकी।
चेहरा चादर से क्यों ढका है इसका,
कहती बड़ी बहन हो रुआंसी,
हिम्मत न होती किसी की चादर हटाने की,
दुर्दशा देख बाइक की जो ऐसी।
कोस रहा पिता खुद को सर पकड़े,
आखिर क्यों इसे मैंने बाइक दिलाई,
अरमानों को पूरा करने वाली बाइक,
बेटे की मौत बन कर आई।
जाने भूल किसकी थी जिसमें,
एक पूरा परिवार बिखर गया,
स्पीड नाम का ये राक्षस तो,
दो बेटों और एक भाईको निगल गया।



© ✍️शैल