...

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"किसकी कलम से लिखी जाऊँ?"
मैने कभी खुद को लिखा ही नहीं,,
या शायद जरूरत ही नहीं पड़ी,,

दूसरों को लिखते लिखते,,
उन्हीं की कहानी का एक हिस्सा बन गई,,
की अपनी ही कहानी भूल गई,,

सच कहूं तो,,
कभी खुद को लिखने की,,
कोशिश ही नहीं की,,,

शायद इसलिए,,
क्योंकि मैं पहले ही लिखी जा चुकी थी,,

कोई और है,,
जिसने मुझे बहुत ही खूबसूरती से लिखा,,
ओर सबसे ज्यादा संजो के रखा,,

उन्होंने मुझे वक्त से पहले बड़ा होने नहीं दिया,,
ओर बड़े होने के बाद भी बचपने को खोने नहीं दिया,,

कभी लगता है,,
उन्हें अपनी जिंदगी के उस हिस्से से मिलवाऊ,
जिससे वो मरहूम है,,,

मै चाहती हु मेरे जिंदगी...