...

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दाम क्या है यहां आदमियों का?
क्या राह खोज के ला सकते हो ऐसी, जिसमें कोई ठोकर नहीं
मिल जाए तो देखना गौर से, उसमें कोई मंजिल भी नहीं

चुन-चुन कर खिलाता है खुदा, फूल अपनी फुलवारी में
धैर्य, हिम्मत, लगन, नियत, तौलता है वो रोज तराजू में

और तुम? एक झटके से डर गए?
यह झटका ही है, जो मंजिल के पास ले जाएगा
गिरोगे तभी तो, गिर गिर कर उठना आएगा

मंजिल दूर नहीं अब, जोर से थामों हाथ आंधियों का
लक्ष्य पाने की फितरत रखो बरकरार, वरना दाम क्या है यहां आदमियों का?
© Ashutosh Kumar Upadhyay