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हार के जीत।
कभी ठोकर खा गिर पड़ा,
तो कभी गिरते गिरते बचा।
किस्मत बुरी नहीं मेरी,
बस सिक्के ने धोखा दिया।
रस्ते पे चलते चलते,
लिए ठोकरों का दर्द।
जब मंजिल दिखने लगी,
तब उत्साह आनंद था अलग।
सुनहरे भविष्य की नब्ज में,
बहु लहू बन कर मैं।
हासिल कर सारे मुकाम,
खुद को विजेता कहुं मैं।
© Kuldeep_Saharan
तो कभी गिरते गिरते बचा।
किस्मत बुरी नहीं मेरी,
बस सिक्के ने धोखा दिया।
रस्ते पे चलते चलते,
लिए ठोकरों का दर्द।
जब मंजिल दिखने लगी,
तब उत्साह आनंद था अलग।
सुनहरे भविष्य की नब्ज में,
बहु लहू बन कर मैं।
हासिल कर सारे मुकाम,
खुद को विजेता कहुं मैं।
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