janmdiwas patra
आज फिर कलम लिए मैं अपनी मेज पे बैठा हूं,
खुली खिड़की से ना जाने क्यूं निहार रहा बाहर का नजारा,
कौन गुज़रा सड़क पे , नहीं किया गौर, कौन आरा जारा।
स्तब्ध सा हूं मैं या मेरी कलम है उदास, कुछ सुखा सा है एहसास
दिल है कुछ भारा। शायद तुम बिन नही है गुजारा,
,मेरा, फिर आ मिलूं तुमसे...
खुली खिड़की से ना जाने क्यूं निहार रहा बाहर का नजारा,
कौन गुज़रा सड़क पे , नहीं किया गौर, कौन आरा जारा।
स्तब्ध सा हूं मैं या मेरी कलम है उदास, कुछ सुखा सा है एहसास
दिल है कुछ भारा। शायद तुम बिन नही है गुजारा,
,मेरा, फिर आ मिलूं तुमसे...