...

13 views

#छायाओंकीकथाएं
#छायाओंकीकथाएँ

बिते अतीत का बित गया जमाना,
अक्सर कूहरे सा धुंधलका हांफता.
गरिमामयी वो आकृतियाँ,
आज अस्पष्ट सी दिखाई देती.
जैसे अन्धकार में प्रतिछाया,
मस्तिष्क में कहीं कोने में छूपी.
कमजोर ,बहुत कमजोर सी स्मृतियाँ,
अब शायद ही कौंधती मन को विचलित करती.
दिमाग की कमजोर नसों सी,
ह्रदय की मंद पड चुकी गति सी स्पंदित.
आकुलता का कहीं नाम ओ निशाना नहीं,
इन्तजार अब भयावह भूतकाल सा लगता.
आज अचानक गुजरे उस जालिम गली से,
वह दबी नस सी कमजोर धडक उठी फट से.
वही चौराहा,वही गली,चारों ओर नजर जाती जहाँ,
उपवन का तो पता नहीं,बगिया छोटी मौजूद हैं वहाँ.
पहली बार कोकिला सी कूक में सूना था अपना नाम,
फिर बार बार दूहराता रहता असंख्य बार.
बस एक ! मेल जोल बढा ही था,
ह्रदय में प्यार अंकुरित नया नया.
तबादला हुआ कि बिछड़ना तकदीर बैरी,
पता नहीं है घण्टेभर की शायद लास्ट मुलाकात रही.
आज पीढ़ी बिते के बाद गुजर रहा था,
हवा का झोंका शायद याद दिला गया.
मनमें दबी स्मृति मंद हंसी बन उमड आयी,
मानौ बेतरतीब बिछडी कथाएँ उभर आयी.
© Bharat Tadvi