ग़ज़ल
तय हुआ वक़्त , मेरी मय्यत का
है निकाह उसका , इस दिसम्बर में
बिखरा हूँ लेकिन मुझे आबाद होना चाहिए
यूँ निखर के अब मुझे बगदाद होना चाहिए
जिस तरह से लड़कियों को,उलझा के रखते हो तुम
यार तुमको तो अमीनाबाद होना चाहिए
आँख में यूँ रोक के मत रखिए साहिब अश्क़ को
जो परिंद आज़ाद है,आज़ाद होना चाहिए
होने को है शादी मेरी,इश्क़ भी लौट आया है
मुझको रोना चाहिए,या शाद होना चाहिए?
कह रहे हो इश्क़ है,जर्जर तिरी ग़ज़लों से फिर
हिज्र वाला शेर तुमको याद होना चाहिए
है निकाह उसका , इस दिसम्बर में
बिखरा हूँ लेकिन मुझे आबाद होना चाहिए
यूँ निखर के अब मुझे बगदाद होना चाहिए
जिस तरह से लड़कियों को,उलझा के रखते हो तुम
यार तुमको तो अमीनाबाद होना चाहिए
आँख में यूँ रोक के मत रखिए साहिब अश्क़ को
जो परिंद आज़ाद है,आज़ाद होना चाहिए
होने को है शादी मेरी,इश्क़ भी लौट आया है
मुझको रोना चाहिए,या शाद होना चाहिए?
कह रहे हो इश्क़ है,जर्जर तिरी ग़ज़लों से फिर
हिज्र वाला शेर तुमको याद होना चाहिए