...

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ग़ज़ल
तय हुआ वक़्त , मेरी मय्यत का
है निकाह उसका , इस दिसम्बर में


बिखरा हूँ लेकिन मुझे आबाद होना चाहिए
यूँ निखर के अब मुझे बगदाद होना चाहिए

जिस तरह से लड़कियों को,उलझा के रखते हो...