...

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रामराज्य
रामराज्य को ढलने वाले, राम के पथ पर चलने वाले
पीछे जाने कहां रह गए, कांख में रावण मलने वाले
महापुरुष क्यों जन्म ना लेते? आभा बनकर जलने वाले
इंतजार है अब भी किसका? जब दुर्योधन छलने वाले
कल होगा कब जन्म कलि का? महा भयंकर महाबली का
आखिरी कब तक सहना होगा? शोषण हमको क्रूर बलि का?
खुले आसमां के नीचे, वो बर्फ को ढककर सोने वाले
आंसू भी वो पी जाते हैं, भूंख-प्यास से रोने वाले
बारिश की छतरी के नीचे, बीज़ अन्न का बोने वाले
टुकड़े भर को तरस रहे हैं, सब कुछ अपना खोने वाले
प्रकृति जिसने रचा जीव को, ख़ुद जीवन को तरस रही है
मानव की ये कैसी ममता? देखो सब पर बरस रही है
आपस में सब मरे जा रहे, जाने देखो कहां जा रहे?
खुद के फांसी के फंदे को, हम सब मिलकर बुने जा रहे
अंत न जाने कैसा होगा? सृष्टि के इस दोहन का
चक्र सुदर्शन जब नाचेगा, धरा पे मेरे मोहन का...
© Er. Shiv Prakash Tiwari