...

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मंज़र....
बदल गया है मौसम तेरे शहर का
असर हुआ है फिजाँ पर जहर का...

जहरीली हवाओं की कयामत हुई
पत्ता पत्ता सुख गया है शजर का....

चला था जिस पर सुकुन से कभी
ये क्या हाल हुआ है उस डगर का....

कफसमे कसमोके वो कैद कर गया
कैसे बयाँ करे हम किस्सा सफर का....

साँसे रुकी है नब्ज मे है जान जरासी
इंतजा़र है "संदीप"आखरी मंज़र का...
© संदीप देशमुख