प्रेम समर्पण है....
शहनाई में एक रुदन दब गया था
रुदन था प्रेम से बिछुड़ने का
आठवीं पढ़ी एक लड़की का विवाह
एक पांचवी पढ़े किसान से हो रहा था
जिसे साईकिल चलाना नहीं आता था
औऱ लड़की के प्रेमी ने
उसे साईकिल चलाना सिखाया था
लड़की ने माँ बाप को साफ कहा था
शादी भले ही कर दो, पर मैं उसे अपनाउंगी नही
लड़की की माँ ने उसके पिता से कहा था
साथ रहते हैं तो दीवारों से भी प्रेम हो जाता है
वो तो जीता जागता नर है
तोरण द्वार पर दूल्हा था
रोते हुए दुल्हन ने वरमाला पहनाई थी
चँवरी का धुआं लग गया था
विदाई हो गई थी
सुहागरात थी, लड़की के पेट में दर्द था, जोर से
पति को दया आई
पूरी रात खाट से नीचे बैठ उसे तड़पते देखा
अजवायन नमक और मैथि पीस कर खिलाई
किसान के कोई न आगे था न पीछे
मां बाप बचपन मे छोड़ चले थे
रात भर जागा किसान
सुबह ही फेरमोड़ा के लिए निकल गया था
उसे ऊंट गाड़ी में लेकर
फिर से भेज दिया दुल्हन को माँ बाबा ने
अब तेरा घर संसार वही है
किसान ने ऊंट गाड़ी से लौटते
दिखाया अपना खेत नववधू को
कहा आज से सब तुम्हारा
कोई मुस्कान न खिली
न मालिकाना हक जगा
खामोशी...खामोशी..खामोशी….
किसान को खेत मे बहुत काम है
मुहं अंधेरे निकलना पड़ता है
कलेवा नहीं मिला था
खेत तो जाना ही था
फावड़ा कंधे पर था
और रस्सी हाथ मे
दोपहर हो चली थी
भूख से पेट चिपक आया पसली से
दूर टीले की ढलान से
नववधू आती न दिखी
एक चक्कर खेत का लगा आया वो
कुछ खेजड़ी की पकी सांगरी लाया
मेड़ से कैर के पके पीलू
और झाड़ी के कच्चे पक्के बेर
कुछ खा लिए कुछ बचा लिए
एक जाल के पेड़ नीचे बैठ
बांसुरी में फूंक रहा था
अपना सुख अपना दुख
की टीले से नीचे की और
उतरती दिखी एक अप्सरा
बांसुरी रो रही थी कि गा रही थी
केवल वादक जानता था
रात का वाकया याद था
मुझे छूना नहीं मुझे घिन्न आती है ऐसे काम से
वज्र गिरा था दिल पे
पर जीना होता है
मरना आसान नहीं
वो टीले से उतरी अप्सरा
ले आई थी सर...
रुदन था प्रेम से बिछुड़ने का
आठवीं पढ़ी एक लड़की का विवाह
एक पांचवी पढ़े किसान से हो रहा था
जिसे साईकिल चलाना नहीं आता था
औऱ लड़की के प्रेमी ने
उसे साईकिल चलाना सिखाया था
लड़की ने माँ बाप को साफ कहा था
शादी भले ही कर दो, पर मैं उसे अपनाउंगी नही
लड़की की माँ ने उसके पिता से कहा था
साथ रहते हैं तो दीवारों से भी प्रेम हो जाता है
वो तो जीता जागता नर है
तोरण द्वार पर दूल्हा था
रोते हुए दुल्हन ने वरमाला पहनाई थी
चँवरी का धुआं लग गया था
विदाई हो गई थी
सुहागरात थी, लड़की के पेट में दर्द था, जोर से
पति को दया आई
पूरी रात खाट से नीचे बैठ उसे तड़पते देखा
अजवायन नमक और मैथि पीस कर खिलाई
किसान के कोई न आगे था न पीछे
मां बाप बचपन मे छोड़ चले थे
रात भर जागा किसान
सुबह ही फेरमोड़ा के लिए निकल गया था
उसे ऊंट गाड़ी में लेकर
फिर से भेज दिया दुल्हन को माँ बाबा ने
अब तेरा घर संसार वही है
किसान ने ऊंट गाड़ी से लौटते
दिखाया अपना खेत नववधू को
कहा आज से सब तुम्हारा
कोई मुस्कान न खिली
न मालिकाना हक जगा
खामोशी...खामोशी..खामोशी….
किसान को खेत मे बहुत काम है
मुहं अंधेरे निकलना पड़ता है
कलेवा नहीं मिला था
खेत तो जाना ही था
फावड़ा कंधे पर था
और रस्सी हाथ मे
दोपहर हो चली थी
भूख से पेट चिपक आया पसली से
दूर टीले की ढलान से
नववधू आती न दिखी
एक चक्कर खेत का लगा आया वो
कुछ खेजड़ी की पकी सांगरी लाया
मेड़ से कैर के पके पीलू
और झाड़ी के कच्चे पक्के बेर
कुछ खा लिए कुछ बचा लिए
एक जाल के पेड़ नीचे बैठ
बांसुरी में फूंक रहा था
अपना सुख अपना दुख
की टीले से नीचे की और
उतरती दिखी एक अप्सरा
बांसुरी रो रही थी कि गा रही थी
केवल वादक जानता था
रात का वाकया याद था
मुझे छूना नहीं मुझे घिन्न आती है ऐसे काम से
वज्र गिरा था दिल पे
पर जीना होता है
मरना आसान नहीं
वो टीले से उतरी अप्सरा
ले आई थी सर...