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टुकड़े ...!?
अब मोहब्बत करने से
रूह कांपती है
अब किसी को अपना कहने से
पहले सो बार सोचने पर मजबूर हो जाती हू
किस पे विश्वास करूं
किस पे नही
अक्सर यही टटोलती रहती हू
क्या पता जो आज
अपने आप को मेरा शुभचिंतक बता रहे है
कल वहीं मेरे लिए हैवान हो जाएं
क्या पता जो आज
मेरे जज़्बातों को समेट रहें है
कल वहीं मुझे टुकड़ों में बांट दें ...
© HeerWrites
रूह कांपती है
अब किसी को अपना कहने से
पहले सो बार सोचने पर मजबूर हो जाती हू
किस पे विश्वास करूं
किस पे नही
अक्सर यही टटोलती रहती हू
क्या पता जो आज
अपने आप को मेरा शुभचिंतक बता रहे है
कल वहीं मेरे लिए हैवान हो जाएं
क्या पता जो आज
मेरे जज़्बातों को समेट रहें है
कल वहीं मुझे टुकड़ों में बांट दें ...
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