...

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शिव सार
*शिव*

शिव विश्वास है,
शिव एहसास है,
शिव प्रकाश है,
आकाश सा विस्तार है,
उर का समस्त सार है !

शिव वीणा की झंकृत तान सा,
किसी राग मतवाले के गान सा,
है पवित्र बिल्कुल शमशान सा,
जैसे तरुण तपस्वी निर्विकार है,
कोई शुद्ध रक्त का संचार है !

शिव बिन संसार की जड़ चेतना शून्य,
शिव अद्भुद अटूट और वेदिका सा पुण्य,
है सत्य बिल्कुल ईश सा सुलभ और सुगम्य,
किसी की शक्ति किसी का इव सृजन का आधार है,
प्रकृति का उद्धार तो वहीं अप्रकृती का संहार है !

बिन शिव जीवन-मरण की हर कथा व्यर्थ,
मेरे शिव तो अपूर्णता में पूर्णता का अर्थ,
वो समृद्ध सुसंस्कृत सुकर्म का भावार्थ,
फिर कैसे न कहें जगत को शिव आधार है,
ये अदृश्य है, अलख है, एक रूप साकार है !

शिव ही भूत,भविष्य और वर्तमान,
शिव ही चाँद,सूरज और आसमान,
शिव ही मृत्यु क्रोध और दया निधान,
दर्श त्रिकालज्ञ त्रिनेत्र वो मृत्यु है संसार है,
शव में निहित शक्ति त्रिपुण्ड वो शृंगार है !

शिव विश्वास है,
शिव एहसास है,
शिव प्रकाश है,
आकाश सा विस्तार है,
उर का समस्त सार है !