...

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मासिक धर्म(periods)
न जाने कितना दर्द सहती वो,
पूछे कोई कुछ तो ठीक हूं हंसकर कहती वो,
छिपाती है पीड़ा सबसे,
दिनभर चुप सी रहती वो,
आती है बारी जब उन दिनों की,
बस तारीखे गिनने लगती वो
छटपटाती पूरा दिन दर्द से,
सभी से पेट दर्द का बहाना करती वो,
हो जाते बंद उसके लिए दरवाजे मंदिर के,
रसोई घर में भी जा न पाती वो,
कही जाना उसे गवारा नहीं,
उन दिनों न जाने कहा खो जाती वो,
जो रंग देता उसे शक्ति जीवन देने की,
न जाने उस रंग से क्यों घबराती वो,
बना दिया क्यों शर्म समाज ने इसे,
बस यही समझ न पाती वो,
क्यों कहता समाज इसे महावारी,
क्यों हो जाती इसमें अशुद्ध,
क्यों इसमें अपवित्र कहलाती वो।
© t@nnu