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पृथ्वी दिवस
शत शत नमन करुं तुम्हें हे मां वसुंधरा"
तेरी कृपा बिन संभव कहां जीवन था।।
जीव जंतु मानव और दानव,
सबको दिया तुम ने ही जीवन।।
पेड़ पौधे बगिया और उपवन "
खूब सजाया तुमने ये आंगन।।
नदि सरोवर पोखर और ताल तलैया"
आश्रय दिया तुमने ही सबको हे माता।।
अन्न देकर पेट पिलती पानी से प्यास बुझाती।
सारी जरूरतें हमारी मां वसुंधरा तू पुरा करती।।
इतने पर भी हम दम नहीं धरते,
प्रकृति को परेशान हैं करतें।।
प्लास्टिक का उत्पादन,
नयी तकनिकियां और संसाधन।।
पृथ्वी का करते हैं हम दोहन,
बहुत हुआ ये ऐशो आराम का जीवन।।
अब चलों चलते हैं हम पुरातन की ओर,
सनातन और पुरातन को हम अपनाएं,
अपनी पृथ्वी को प्रदुषण से बचाएं।।
घर घर अलख जगाएं पेड़ पौधे लगाए,
अपनी और अपनों की जान बचाएं।।
किरण
तेरी कृपा बिन संभव कहां जीवन था।।
जीव जंतु मानव और दानव,
सबको दिया तुम ने ही जीवन।।
पेड़ पौधे बगिया और उपवन "
खूब सजाया तुमने ये आंगन।।
नदि सरोवर पोखर और ताल तलैया"
आश्रय दिया तुमने ही सबको हे माता।।
अन्न देकर पेट पिलती पानी से प्यास बुझाती।
सारी जरूरतें हमारी मां वसुंधरा तू पुरा करती।।
इतने पर भी हम दम नहीं धरते,
प्रकृति को परेशान हैं करतें।।
प्लास्टिक का उत्पादन,
नयी तकनिकियां और संसाधन।।
पृथ्वी का करते हैं हम दोहन,
बहुत हुआ ये ऐशो आराम का जीवन।।
अब चलों चलते हैं हम पुरातन की ओर,
सनातन और पुरातन को हम अपनाएं,
अपनी पृथ्वी को प्रदुषण से बचाएं।।
घर घर अलख जगाएं पेड़ पौधे लगाए,
अपनी और अपनों की जान बचाएं।।
किरण
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