...

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असली चेहरा
कहते हैं,कुछ लोग यही कि
नहीं दोस्त से बढ़कर प्यार,
हो, कितनी भीं बहसबाजियाँ
पर होती ना टकरार |
वास्तव में मेरे जीवन में
आये अनेको ऐसे मित्र
जो करके चर्चे दो- चार दिन
रोक देते बात का ज़िक्र |

तब कैसे कह सकता हू बोलो
सिर्फ प्यार ही देती धोखा ?
क्योंकि इसी राह पर मित्र भी चल
अलग होने को ढूंढ़ते मौका |
बस गलती तो इतनी हैं कि
पहचान ना पाया चेहरा,
दिलो जान से किया मोहब्बत
संग दे गया उसपर पहरा |

पहले प्रिय ने दिया दगा
अब ,जख्म दे जाते बंधु साथी
सुन लो पाठक, इस पद्य से
अवश्य बरतना सावधानी |







© अविनाश कुमार साह
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