...

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डरती हूं
फूलों सी कोमल,
नन्ही सी जान होती हैं बेटियां
घर भर में सबकी
पहचान होती हैं बेटियां
आंगन में नन्हे कदमों की थाप
और दीवारों पर हथेलियों की
छाप होती हैं बेटियां।

जतनों से पाली जातीं,
पलकों पर संभाली जातीं
पर डर जाती हर मां,
जब जब अखबारों की
सुर्खियों पर नजर जाती ।

डर...... हां, डर लगता बहुत
जब इंसान
अपनी इंसानियत भूल जाता
डर लगता,
जब हैवानियत की हदें तोड़
नन्ही बच्चियों को नोंच खाता।
बेटियां पैदा होने से डर नहीं लगता
डर लगता है समाज में
घूमते भूखे भेड़ियों से।
डर लगता, जाने कब किसी
दरिंदे की दरिंदगी का
शिकार हो जाए

इतनी हवस,
कि दुधमुंही को भी नहीं छोड़ते।
जाने क्या हो गया इंसान को
क्या वो इंसान...