...

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मेरी प्यारी बहेणे...
मेरी सब बहेने,
चाय की तरह कडक है,
पकपक कर स्वडिस्ट हो गयी है,
जिंदगी जिने मे माहीर हो गयी है.

दूध बनकर ससुराल आई थी,
अद्रक की तरह कुटी गयी,
वो अपनी चीनी मिळती गयी,
और तझुरबा के आंच पर,
खुद्द को पंक्ती रही.

और आज देखो सब,
मजे से घर चलती है,
और आपण भी दिल बेहलाती है,
छियलीस के पार होकर भी,
छबीस सी नजर आता...