...

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ग़ज़ल... बिछड़ने से पहले
न लौटेंगा घर शाम ढलने से पहले
पता चला गया था बिछड़ने से पहले

मैं इक आईना हूँ न अब टूट जाऊँ
तू मुझकों बचा ले बिखरने से पहले

तुम्हारे बगीचे का इक फूल था मैं
न इक बार सोचा मसलने से पहले

न अब पर कतर दे ये शय्याद मौला
मुझे पिंजरे से यूँ उड़ने से पहले

जुबां पे हो कलमा है ख़्वाहिश ये मेरी
मिरे जिस्म से जां निकलने से पहले

बड़े खूबसूरत हंसी लग रहें थे
सभी लोग तेरे सवरने से पहले

वो...