...

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मशरूफ ज़िंदगी के तमाशे मशहूर है
मैं अपने हाल-ए-हालात को लिखता चला गया
देखते ही देखते मैं वक़्त को समझता चला गया
मशरूफ ज़िंदगी के तमाशे मशहूर है आजकल
यूं ही नहीं ख़ामोशी के बहाने बुनता चला गया

ज़ज्बातों को इक इक लफ़्ज़ में ऐसे बदलते है
कहानी इश्क़ के ज़ख़्मों की दिखता चला गया
कोरे पन्नों पे ख्वाबों की रज़ा को ऐसे समेटे हुए
ज़िंदगी के फ़लसफ़ो को मैं बढ़ाता चला गया

निगाहों में निगाहों का ज़िक्र कैसे छुपाएं है
झूठी मूठी तसल्लियों से मैं मिलता चला गया
सवालों में उलझनों की ये भी इक कश्मकश है
मैं किस्से कहानियों में सब कहता चला गया

वक़्त के काबू में हाल-ए-हालात को रखें हुए थे
मैं फ़िक्र के ज़िक्र को पन्नों पे लिखता चला गया
तमाम हसरतों को आज कल भुलाने निकले है
ज़रा ज़रा सी बातों के अफसाने उठता चला गया

अश्कों की बातें ढ़लती हुए रातों को क्या बनाएं
ख्वाबों को ज़िंदगी के पन्नों पे दिखता चला गया
फासलों से आहिस्ता-आहिस्ता मुलाक़ात हुई है
मैं खुद से खुद के इम्तिहानों को तकता चला गया

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes