...

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ऐ ज़िंदगी...
ऐ ज़िंदगी.. अब तो सूरत बदल
बदसूरत रही है अंधेरों में अब तक
उजालों की राहों में अब तो निकल

मुश्किल बहुत है
स्याह कालिख में जीना
खूबसूरती के मायने कभी तो सिखाती चल

क्या थकती नहीं तू
परेशानियों के बोझ तले रौंद के ख़ुद ही को
कभी तो दिखा इस ज़िंदगी से होकर ओझल

कि हिम्मत तो बहुत की
तुझको हराकर मुस्कुराने की
मग़र फट ही जाते हैं आँसुओं के बेकल बादल

भावनाओं की बाढ़ में
रोती बिलखती संग मेरे तू भी
तमन्नाओं की बारिश को
इंद्रधनुषी रंग में कभी तो देने दे ढल

सुना है कि तू है बड़ी ही खूबसूरत
तो मेरी ज़िंदगी के कुछ पन्नों को ही सही
रंगोली से सजा मेरे हक़ में भी..कभी तो चल


© bindu