...

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कोई मर्म लगता है
बेवजह ही ये अश्क है
बेवजह ही मुस्कुराहट
होता वो साया है
लगती है उसकी आहट
युही अब कली खिलती है
बेमौसम ही बारिश बरसती है
खामोश चांद बादल में छुपता है
सूरज अब कुछ ज्यादा धूप देता है
अब जो नज़रें झुकी तो उठती नहीं
यू हया को भी आती शर्म लगती है
सुर्ख सर्द मौसम भी गर्म लगता है
क्या दिल में दबा कोई मर्म लगता है
© Diksha
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