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कोई मर्म लगता है
बेवजह ही ये अश्क है
बेवजह ही मुस्कुराहट
होता वो साया है
लगती है उसकी आहट
युही अब कली खिलती है
बेमौसम ही बारिश बरसती है
खामोश चांद बादल में छुपता है
सूरज अब कुछ ज्यादा धूप देता है
अब जो नज़रें झुकी तो उठती नहीं
यू हया को भी आती शर्म लगती है
सुर्ख सर्द मौसम भी गर्म लगता है
क्या दिल में दबा कोई मर्म लगता है
© Diksha
#writco #writer #writcoapp #Love&love
बेवजह ही मुस्कुराहट
होता वो साया है
लगती है उसकी आहट
युही अब कली खिलती है
बेमौसम ही बारिश बरसती है
खामोश चांद बादल में छुपता है
सूरज अब कुछ ज्यादा धूप देता है
अब जो नज़रें झुकी तो उठती नहीं
यू हया को भी आती शर्म लगती है
सुर्ख सर्द मौसम भी गर्म लगता है
क्या दिल में दबा कोई मर्म लगता है
© Diksha
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