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मैं और मेरा प्रतिबिंब !
#दर्पणप्रतिबिंब

दर्पण में जब मैंने, खुद को देखा एक दिन,
अचानक एक अजनबी चेहरा, सामने आया उस दिन।

वो चेहरा मुस्कुराया, जैसे जानता हो मुझे,
आँखों में उसकी चमक, जैसे पहचानता हो मुझे।

"कौन हो तुम?" मैंने पूछा, थोड़ी सी हैरानी में,
वो बोला, "मैं हूँ तेरा प्रतिबिंब, तेरे ही सायानी में।"

"तू क्यों इतना उदास है?" उसने मुझसे सवाल किया,
"क्या खोया है तूने, जो दिल में गम की धार लिया?"

मैंने कहा, "यह जीवन, एक कठिन सफर है,
ख्वाबों की तड़प में, हर पल बिखरता सफर है।"

वो चेहरा हंस पड़ा, और बोला, "जान ले ये बात,
दुख भी एक साथी है, सुख की है सौगात।"

"जीवन की इस यात्रा में, दोनों का है साथ,
सिर्फ हंसी नहीं, आँसू भी हैं जरूरी हर रात।"

मैंने उसे देखा, उसकी आँखों में सच्चाई थी,
दर्द की गहराई में, छुपी हुई सादगी थी।

"कभी-कभी लगता है, सब कुछ छूट गया है,
जीवन का हर पल, जैसे टूट गया है।"

वो चेहरा फिर बोला, "यह एक प्रक्रिया है,
हर दर्द के पीछे, एक नई दिशा है।"

"हर आँसू जो तूने बहाया, एक नयी कहानी है,
हर मुश्किल जो तूने झेली, एक नयी रवानी है।"

"तो चल, अब मुस्कुरा, और जीवन को अपना ले,
हर खुशी और हर गम को, दिल से अपना ले।"

मैंने दर्पण में देखा, उस चेहरे का आत्मविश्वास,
उसके हर शब्द में, था सच्चा विश्वास।

मैंने खुद से कहा, "चल अब नई राह पर बढ़ चलें,
जीवन की इस यात्रा में, हर पल को जी भर जी लें।"

दर्पण में वो चेहरा, फिर से मुस्कुराया,
जैसे उसने मेरे दिल में, नया हौंसला जगाया।

अब हर दिन जब भी, दर्पण में खुद को देखता हूँ,
उस अजनबी चेहरे से, एक नयी सीख लेता हूँ।

© Shiv Yogi