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मैं और मेरा प्रतिबिंब !
#दर्पणप्रतिबिंब

दर्पण में जब मैंने, खुद को देखा एक दिन,
अचानक एक अजनबी चेहरा, सामने आया उस दिन।

वो चेहरा मुस्कुराया, जैसे जानता हो मुझे,
आँखों में उसकी चमक, जैसे पहचानता हो मुझे।

"कौन हो तुम?" मैंने पूछा, थोड़ी सी हैरानी में,
वो बोला, "मैं हूँ तेरा प्रतिबिंब, तेरे ही सायानी में।"

"तू क्यों इतना उदास है?" उसने मुझसे सवाल किया,
"क्या खोया है तूने, जो दिल में गम की धार लिया?"

मैंने कहा, "यह जीवन, एक कठिन सफर है,
ख्वाबों की तड़प में, हर पल बिखरता सफर है।"

वो चेहरा हंस पड़ा, और बोला, "जान ले ये बात,
दुख भी एक साथी है, सुख की है सौगात।"
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