सपनों की किताब़ :ज़िन्दगी की अख़बार
नींदों से है जल्दी जागना, पर,,
आंखें ये सपने देखने को तैयार हैं।
रहना चाहतीं हैं कभी सुकून से भी ये चाहतें
पर हमेशा तो लगी रहती ख्वाहिशों की भरमार है।
न है चैन से बैठने का इरादा
न ख़्वाब पूरे करने का पागलपन सवार है।
कभी कभी उभरने लगतीं हैं,
ये पानी की लहरों जैसी....
कुछ है अनसुलझी हुई तो
कुछ के बारे में सोचना भी बेकार है।।
बेख़बर हूं ज़रूर पर इरादा मजबूत है
ये जानते हुए भी कि एक ही घर में
हज़ारों दरार है। ह
मकान है ये वाकई किसी का...
आंखें ये सपने देखने को तैयार हैं।
रहना चाहतीं हैं कभी सुकून से भी ये चाहतें
पर हमेशा तो लगी रहती ख्वाहिशों की भरमार है।
न है चैन से बैठने का इरादा
न ख़्वाब पूरे करने का पागलपन सवार है।
कभी कभी उभरने लगतीं हैं,
ये पानी की लहरों जैसी....
कुछ है अनसुलझी हुई तो
कुछ के बारे में सोचना भी बेकार है।।
बेख़बर हूं ज़रूर पर इरादा मजबूत है
ये जानते हुए भी कि एक ही घर में
हज़ारों दरार है। ह
मकान है ये वाकई किसी का...