...

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असहाय
बहुतेरे मोड़ पर जिंदगी में
खुद को अकेला और असहाय पाती हूं
एक बुत सी खड़ी
सारी तकलीफें झेलती जाती हूं।

सोचती हूं कौन से पूर्व जन्म का
अभिशाप है ये
खुद की इज्ज़त अपनी ही
आंखों में खोती हूं
कई बार टूटती और कई बार बिखरती हूं।

दर्द के छींटे सारे बदन पर
बिखरे पड़े हैं
आंसुओं का महलम भी काम न आता
हर एक लम्हा
खुद को असहाय पाती
नसीब में लिखा है जो
वो मिटा नहीं पाती
जानती हूं अब अपने जज़्बातों को
दबाना है
और दूसरों की मेहरबानियों पर ही
ज़िंदा रहना है।।।।।।।।।
19th May 2020, 2:34am

© Rohini Sharma