पाकीज़-ए-मुहब्बत
कोई माँ को अपनी जां कहता है, पिता को अपना जहाँ कहता है,
अपनी माशूका अपनी मुहब्बत को अपनी जमीं अपना आसमाँ कहता है
हाँ, बहुतों का बहुत कुछ कहना होगा
तू वो शख़्स है, जो हर रिश्तों की जगह ले सकता है वक़्त की मांग के साथ
तू मेरे लिए इस बेरहम जहान को इक झटके में छोड़ सकता है
तू मेरी जान के सदके में हर कसमें हर वादे...
अपनी माशूका अपनी मुहब्बत को अपनी जमीं अपना आसमाँ कहता है
हाँ, बहुतों का बहुत कुछ कहना होगा
तू वो शख़्स है, जो हर रिश्तों की जगह ले सकता है वक़्त की मांग के साथ
तू मेरे लिए इस बेरहम जहान को इक झटके में छोड़ सकता है
तू मेरी जान के सदके में हर कसमें हर वादे...