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पाकीज़-ए-मुहब्बत
कोई माँ को अपनी जां कहता है, पिता को अपना जहाँ कहता है,
अपनी माशूका अपनी मुहब्बत को अपनी जमीं अपना आसमाँ कहता है
हाँ, बहुतों का बहुत कुछ कहना होगा
तू वो शख़्स है, जो हर रिश्तों की जगह ले सकता है वक़्त की मांग के साथ
तू मेरे लिए इस बेरहम जहान को इक झटके में छोड़ सकता है
तू मेरी जान के सदके में हर कसमें हर वादे बेझिझक तोड़ सकता है
हाँ, बाख़ुदा ख़ुद बख़ुद ख़ुदा जैसा
दोस्त पाया है मैंने
और किसी मस्जिद की अज़ान जैसी पाक है हमारी दोस्ती, फिर हमारा दिल कैसे किसी और से रिश्ता जोड़ सकता है
हाँ भई, मेरा तो बेशक इन्हीं विश्वासों के साथ तुम्हारे दिल में रहना होगा
हाँ, बहुतों का बहुत कुछ कहना होगा
हर रिश्तों से अलग, कोई मंदिर की इबादत जैसी है ये दोस्ती
मेरा तो बस यही कहना होगा
हाँ, बहुतों का बहुत कुछ कहना होगा
किसी मस्जिद की अज़ान जैसी
पाक है ये दोस्ती
मेरा तो बस यही कहना होगा
© Kumar janmjai