लकीर
सब कुछ छोड़ कर,
दूर कहीं निकल जाऊं,
किसी फ़कीर की तरह,
पर तेरा प्यार है कि,
रोक लेता है मुझे,
दहलीज़ पर खिंची,
किसी लकीर की तरह,
हालांकि डर है मुझको,
रह गया इस पार तो,
बरसती रहेंगी ये आंखें,
सावन की तरह,
पर मालूम है यह भी,
कि लकीर के उस पार,
नोच लेगा कोई छल से,
किसी पापी रावण की तरह।
- राजेश वर्मा
© All Rights Reserved
दूर कहीं निकल जाऊं,
किसी फ़कीर की तरह,
पर तेरा प्यार है कि,
रोक लेता है मुझे,
दहलीज़ पर खिंची,
किसी लकीर की तरह,
हालांकि डर है मुझको,
रह गया इस पार तो,
बरसती रहेंगी ये आंखें,
सावन की तरह,
पर मालूम है यह भी,
कि लकीर के उस पार,
नोच लेगा कोई छल से,
किसी पापी रावण की तरह।
- राजेश वर्मा
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