...

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सफ़र
हर घड़ी एक महज़ याद बन जाती है
बल खाती नदी समुंदर शांत बन जाती है
चलते - चलते जो किसी रोज़ राह थक जाए
तभी शायद वो रुक कर मुकाम बन जाती है

अगर ठहरना ही चलने का अंजाम था
तो क्यों पथिक इतना हैरां, परेशान था ?
और गर ठहरे हो कि कल फिर चल सको,
तो तंबू गहरा गाड़ने का क्या काम था ?


© Adarsh Bhardwaj
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