...

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प्रतीक्षा
#प्रतिक्षा
स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
बैठे रहे ध्यान में, हृदय के रंग।

साधना की ज्वाला में तपे,
हर सांस में अरमान जपे।
नयनों में बस एक ही चित्र,
पाने को शिव, गौरी के लिए पवित्र।

धैर्य की सीमाएं तोड़ीं,
अंतर में बसी एक ही होड़ी।
जीवन की हर डगर पर चलते,
प्रेम की मूरत को मन में सजाते।

हर पल उम्मीद की आस,
जैसे धरती पर छाए मधुमास।
प्रकृति के कण-कण में वही गूंज,
प्रतीक्षा में प्रेम की हो जयकार।

समर्पण, तपस्या, और आराधना,
सपनों में बसती सजीव साधना।
शम्भू संग गौरा का मिलन,
प्रतीक्षा की पूर्णता का अमिट चिन्ह।

यह प्रेम की यात्रा है अनंत,
जहां समर्पण बने चिरंतन।
प्रतीक्षा ही है वो पुल,
जो जोड़ दे मन को परम शाश्वत मूल।

_Kajal