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ज़माने में मुल्ज़िम
ज़माने में मुल्ज़िम, मैं 'मद' मानव दास हो गया,
कोई मातमभरा माहौल, अब आसपास हो गया,
ज़माने में मुल्ज़िम, मैं 'मद' मानव दास हो गया।

बेगुनाही के सुबूत, किस-किस को दिखाऊंगा,
ज़ख़्म कब कितने मिले, ये किसको बताऊंगा,
चटखारे लेते हैं लोग, यूंही कौन यहां सुनता है,
सबको फूल हैं प्यारे, कांटों को कौन चुनता है,
स्याह काले अंधेरों को, चेहरा मेरा रास हो गया,
ज़माने में मुल्ज़िम, मैं 'मद' मानव दास हो गया।

संभाले हुआ था जिसे, वो इज़्ज़त बदनाम हो गई,
कुछ भी बाक़ी न रहा, बदनामी सरेआम हो गई,
क़ाबिलियत भी न बची, मंज़िल बहुत दूर हो गई,
अख़बारों में मनगढ़ंत बातें, बेहद मशहूर हो गई,
बेचैन हो रही हैं धड़कनें, मन भी उदास हो गया,
ज़माने में मुल्ज़िम, मैं 'मद' मानव दास हो गया।

आया था क़रीब तुम्हारे, अपनी उड़ान छोड़कर,
नाता जोड़ा था तुमसे, अपनों से नाता तोड़कर,
सबके सामने आकर, हक़ीक़त से पर्दा उठा दो,
साथ दिया था मैंने तुम्हारा, अब सबको बता दो,
ज़िंदगी दे रही दग़ा, कुछ ऐसा अहसास हो गया,
ज़माने में मुल्ज़िम, मैं 'मद' मानव दास हो गया।

भूल समझकर भुलाया मैंने, लोगों की भूल को,
लोग नासमझी समझ बैठे, मेरे इसी उसूल को,
कैसे संभलूं अब मैं, इक अधूरी इबारत हो गया,
जिसमें कोई स्तंभ नहीं, हिलती इमारत हो गया,
तड़प उठी रुह मेरी, माहौल बदहवास हो गया,
ज़माने में मुल्ज़िम, मैं 'मद' मानव दास हो गया।

कोई मातमभरा माहौल, अब आसपास हो गया,
ज़माने में मुल्ज़िम, मैं 'मद' मानव दास हो गया।
मानव दास 'मद' ✍️
© manavdass@gmail