दोराहा उफ्फ्फ ये परिस्थितियां
हालातों का शिकार हुआ एक शख्स-----
हाथों में उसके
काश कुछ तो होता
गम मिटाने का हक ना सही
कष्ट हटाने का बल ना सही
किन्तु ए जिंदगी
अपनों के आसूं पोछने
का हक तो ना छीना होता
इतनी भी बुज़दिल है
बनी तु क्यों ज़िन्दगी
कम से कम
हाथ जोड़ माफ़ी माँग सके
इस लायक तो छोड़ा होता
उफ्फ्फ ये परिस्थितियां....
तेरी न्याय की नीतियों को
समझ पाने का बल ना सही
ज़िन्दगी
तेरे कर्म के सिद्धांतों को बूझ सके
वह कला ना सही
अरे चलो
पूरी दुनिया को समझा सके
वह काबिलियत ना सही
किन्तु
उसके उस एक खास शक्स
जिसके विश्वास पर उसका
अस्तित्व टिका था
बस उसे ही समझा पाने
तक के लायक तो...