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भावशून्य राजनीति में चीखती है जनता
कोरोना के पलटवार में इंसान खड़ा है,
दहशत में पूरा देश पड़ा हैl
कहीं अपनों को खोने का गम,
तो कहीं मातम का माहौल बना हैll
अपनों के सांसों के खातिर,
सेकेंड, घंटा बन आया है।
सांसे भी अब सेकंड, मिनट,
और घंटों पे बिक रहा है।।
अपनों के लाशों का मेला है ,
सिस्टम का सब खेला है।
हॉस्पिटल के अंदर- बाहर,
मौत ने डाला डेरा है।।
चिमनीयों को लाश निगल गई,
मरघट की कमी ने धूम मचाया है।
नए शमशान की नींव पड़ी ,
ऐसा परिवेश बन आया है।।
ऊपर वाले भी दुआ न सुनता,
ऐसा पल हो आया है ।
अपनों के सामने अपनों का
मौत ने तांडव मचाया है।।
सिस्टम के लुटेरेपन ने,
फिर से दिल दहलाया है।
गरीबी ,बेबस, लाचारी के साथ,
कालाबाजारी हावी हो आया है।।
सांसो को भी राजनीति के,
गलियारों में क्यों रखा जाता है?
जनता क्यों तुझसे दवा नहीं,
जहर का मांग दोहराता है?
महामारी ने देश को,
चित्ता के धुआं में खड़ा कराया हैl
सिस्टम के गिद्ध हो जाने का,
स्थिति ने प्रमाण दिखाया है।।
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