...

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मेरी दास्तां
लत लगी है मुझको, हर नई लत लगाने की
कभी खुशी में, कभी गम में, उलझ जाने की

बिना उलझे इसमें, जिंदगी सुलझाऊं कैसे
बात नहीं लगती मुझको, यह हजम हो जाने की

उसने कहा जब, तुम भी सुनाओ अपनी राम कहानी
दे दी कसम तब, उसको किसी को ना बताने की

तंग गलियों से गुजरा, मेरे संग जब वो
देर नहीं लगी उसको, नैनों से अश्रु बहाने की

हंसते हुए पीटा था, जालिमों ने मुझे बेरहम
मिली थी सजा मुझे, कुछ नया आजमाने की

दाग वो जेहन के, मिटते नहीं अभी भी कमबख्त
कोशिश बहुत की मैंने, 'सर्फ एक्सेल' लगाने की

एक भले मुसाफिर से पूछा, जिंदगी का पैमाना
कुछ ना बोला, बस, गंध दे गया मयखाने की

© Ashutosh Kumar Upadhyay



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