शायद,,
खुद से ही उलझ गई हूं खुद में,,,
अब शायद ही कभी सुलझ पाऊंगी,,
एक जंग जारी है मेरी खुद से,,
क्या ही फतेह पाऊंगी,,
ख्वाबों के खौफ ने जगा रखा है,,
की हारने के डर ने नींदों को उड़ा रखा है,
अब शायद...
अब शायद ही कभी सुलझ पाऊंगी,,
एक जंग जारी है मेरी खुद से,,
क्या ही फतेह पाऊंगी,,
ख्वाबों के खौफ ने जगा रखा है,,
की हारने के डर ने नींदों को उड़ा रखा है,
अब शायद...