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जौहर प्रयाण गीत।।
कवि -श्याम नारायण पाण्डेय।

अन्धकार दूर था, झाँक रहा सूर था ।
कमल डोलने लगे, कोप खोलने लगे ।।

लाल गगन हो गया, मुर्ग मगन हो गया ।
रात की सभा उठी, मुस्कुरा प्रभा उठी ।।

घूम घूम कर मधुप, फूल चूमकर मधुप।
गा रहे विहान थे, गूँज रहे गान थे ।।

रात - तिमिर लापता, चाँद का न था पता ।
तुहिन - बिंदु गत कहीं, छिप गये नखत कहीं ॥

पवन मंद बह चला, मधु मरन्द बह चला ।
अधखिले खिले कुसुम, डाल पर हिले कुसुम ।।

विविध रंग-ढंग के, विविध रूप - रंग के ।
बोलते विहंग थे; बाल - विहग संग थे ।।

भानु - कर उदित हुए, कंज खिल मुदित हुए ।
न्याय भी उचित हुए, कुमुद संकुचित हुए ।।

जान गमन रात का जान समय प्रात का।
वीर सब उछल पड़े; महल से निकल पड़े ।।

दिवस के...