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गुमनामी (भारतांकित भाग - 7)
भारतांकित रचना को आगे बढ़ाते हुए भारत मां की गुलामी से आजाद के सफर पर प्रकाश डालूंगा। यह हम सब का कर्तव्य है की इस आजादी को जो हजारों बरस बाद नसीब हुई है उसका उचित सम्मान करें और इसमें निरंतर प्राण भरें। इस रचना के 6 भाग story section में हैं।

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करूंगा अंकित उस बेईमानी को
जो तुछ्यता से होती रही
उस गुमनामी को
जिसमें भारत मां सोती रही
और उस गुलामी को
जिसमें जनता रोती रही

वो तुगलक, वो मुगल
वो अंग्रेजों की कहानियां
वो नालंदा का नाश
वो सोमनाथ की जुबानियां

हजारों सालों से जकड़ी भूमि
अब जाके थोड़ा सांस लेगी
भूली हुई उस सभ्यता का
सबको जरा सा झांक देगी

आजाद हो जो चहक उठी
वो भारत की हरियाली है
जंजीरों को काट निकल
वो जन जन की खुशहाली है

पर नेताओं के भ्रष्टाचार से
अब भी इसको कष्ट रहेगा
दंगाइयों के हथियार से
अब भी इसका खून बहेगा

मैं धरती, मैं आकाश,
मैं जीव, मैं चेतना
मैं हीं तो देश हूं
मैं खलिहान, मैं खेत हूं
मैं चट्टान, मैं रेत हूं
सरसर बाहेती पवन चाहौं
मैं कृष्ण, मैं ही स्वेत हूं

मुझमें ऊर्जा की जान भरो
उन शहीदों का सम्मान करो
अब एक हुई इस भारत में
हर प्राणी में प्राण भरो
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© अंकित राज 'रासो'

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