उलझे जज़्बात मेरे
पढ़ती हूँ मेरे ही लिखे अल्फाज़ो को
और सोचती हूँ क्या ये वही शख्स है
जिसके लिए दिनरात एक किया करती थी
उसकी छोटी छोटी ख्वाहिशों के लिए
कभी कभी खुद से लड़ जाया करती थी
अब वो तंज कसता है मेरे गुस्सा होने पर
की क्या हो गया देर ही तो हुई...
और सोचती हूँ क्या ये वही शख्स है
जिसके लिए दिनरात एक किया करती थी
उसकी छोटी छोटी ख्वाहिशों के लिए
कभी कभी खुद से लड़ जाया करती थी
अब वो तंज कसता है मेरे गुस्सा होने पर
की क्या हो गया देर ही तो हुई...