...

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दोहराउ कब तक
रहेगें तुम्हारे वास्ते नादान कब तक
जीएगें हम यूहीं परेशान कब तक

तुम्हें ग़म है मैं लौटा नहीं बुलाने से
हम मुर्दे में डालेंगे मगर जान कब तक

सितम के लिए एक जहां बाकी है
रहेगा हम पे ये कर्म मगर कब तक

हैं ऐसे कई राज़ जो सुलाए है मैंने
रहेगें दिल कि क़ब्र में आख़िर कब तक

ये चंद शेर जो तुझे सुनाने हैं
आईने में खुद को दोहराउ कब तक

© Narender Kumar Arya