...

2 views

कान्हा
जग की सुध बुध कैसे हो मुझे कान्हा
तेरी सूरत जो निहारु तो निहारती ही रहती हूं तेरे नैनों भंवर में उलझी सी रहती हूं
तेरी मुरली की धुन से खींची चली जाती हूं
तेरा हाथ थामू तो लगता है जग जीत जाऊंगी मैं
वो कहते हैं भरम हो तुम
मैं कहती हूं प्रेम हो तुम जो कभी विफल ना होगा
वो राग हो तुम जो हृदय में सदा रहेगा
ज्येष्ठ की वर्षा हो तुम हृदय को आनंदित कर देती है
और मैं
मैं तो कान्हा तेरी रचना हूं जो तूने ही रची है तुझ में ही समा जाने का