...

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जब-जब मैं देखता हूँ....।
रात को सोती इस दुनिया को देखता हूँ |
खूद को पानी की तरह बहता देखता हूँ ||
कितनी शांत हो जाती हैं ये दुनिया |
जब चाँद को आसमा में चढ़ते देखता हूँ ||
इस अँधेरी रात में किसी दिए को जलते देखता हूँ |
कुछ खूद को खुदी में जलते देखता हूँ ||
दिन के बौझ से थक जाती हैं दुनिया |
फिर रात को चुप से सोती इस दुनिया को देखता हूँ।|
दूर दूर जहा भी देखता हूँ |
इस भाग दौड़ कि दुनिया में शान्ति पनपते देखता हूँ ||
कास रोक लू इसे हमेशा यूँही |
पर फिर से सूरज को चढ़ते देखता हूँ।|
सूरज की नयी किरन देखता हूँ |
फिर खुद को उस रोशनी को निहारते देखता हूँ ||
कुछ ऐसा हर रोज देखता हूँ |
किसी की आँखों में नमी तो किसी की आँखों में ख़ुशी देखता हूँ ||
कुछ इस तरह मैं ज़िन्दगी को देखता हूँ |
मुश्कुराते हुए खुद को खुदी में देखता हूँ ||

@AtulPurohit