...

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जब-जब मैं देखता हूँ....।
रात को सोती इस दुनिया को देखता हूँ |
खूद को पानी की तरह बहता देखता हूँ ||
कितनी शांत हो जाती हैं ये दुनिया |
जब चाँद को आसमा में चढ़ते देखता हूँ ||
इस अँधेरी रात में किसी दिए को जलते देखता हूँ |
कुछ खूद को खुदी में जलते देखता हूँ ||
दिन के बौझ से थक जाती हैं दुनिया |
फिर रात को चुप...