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गजल
हर गली चौराहे पर खड़े है रावण सीता हरण को
ये कलयुग है न बनेगा कोई अब राम शायद
खंजर है हर हाथों मे और नशा है आँखों में खून का
खाली पडे हैं मयखाने न होगा किसी के हाथ कोई अब जाम शायद
देर तक बैठ कर बारिश की बूँदें गीनते रहे हम तूम
फिर न मिलेगी यूँ फूरसत की ये अब शाम शायद
तेरी खुशी की लिए चले तो आये महफ़िल से बेवफाई का तिलक लगा कर
न आयेगा फिर कभी तेरे नाम के साथ मेरा अब नाम शायद
इन आँखों ने देखे हैं बदलते पल पल रिश्ते यहाँ
मोहब्बत से किसी को भी नहीं कोई अब काम शायद
sangeeta
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