...

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किसी के आने से...
किसी के आने से मेरी मौजूदगी रहती नहीं,
वक़्त ना देने की फिर नाराज़गी रहती नहीं।

जाने कितने समझ आते हैं ख़ामोश लफ़्ज़,
पहले सी अल्फ़ाज़ में दीवानगी रहती नहीं।

साँसों में बस के साथ चले हैं जो अब तक,
वो दूर रह के देखें कैसे ज़िंदगी रहती नहीं।

धीरे-धीरे दूरियाँ भी बन जाती एक आदत,
दिल-दरम्याँ फिर वो वाबस्तगी रहती नहीं।

मलाल करें कि रखें पहले-सा राब्ता 'धुन',
याद किये बिन भी तो ताज़गी रहती नहीं।
-संगीता साईं 'धुन'


वाबस्तगी - लगाव, Attachment
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© संगीता साईं 'धुन'