कमाती नहीं है, सिर्फ खर्च करती है
स्त्री
कमाती नहीं है, सिर्फ खर्च करती है
खर्च कर दिए अपने सपने
सदा खुश रहें उसके अपने
निज पिता का मान बढ़ाना है
अरे! ससुराल भी तो जाना है
पीहर में वजूद यही दर्ज करती है
कमाती नहीं है, सिर्फ खर्च करती है
खर्च कर दी है मुस्कान अपनी
पन्नों में कैद की दास्तां अपनी
वो मूक बधिर की भांति हो गई
किसी गैर की...
कमाती नहीं है, सिर्फ खर्च करती है
खर्च कर दिए अपने सपने
सदा खुश रहें उसके अपने
निज पिता का मान बढ़ाना है
अरे! ससुराल भी तो जाना है
पीहर में वजूद यही दर्ज करती है
कमाती नहीं है, सिर्फ खर्च करती है
खर्च कर दी है मुस्कान अपनी
पन्नों में कैद की दास्तां अपनी
वो मूक बधिर की भांति हो गई
किसी गैर की...