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यादें
वो भी क्या दिन थे जब दोस्तो के संग गली - गली में घूमा करते थे , ना खाने का होश होता था नाही घर की कोई चिन्ता बस अपनी ही मस्ती में रहते थे । रात को वो दादी नानी की लोरिया आज भी याद आती है । वो दो रुपए की कुल्फी याद आती है , वो मिट्ठी के बर्तन याद आते है । वो गुड्डे...