...

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साहसिच्छा
असीम हो तुम गगन से,
मदमस्त रहो पवन से,
मार्तण्ड से तुम दीप्त बनो,
केसरी से निर्भीक बनो,
अथाह रहो सागर से,
सौम्य बनो मन नागर से,
धैर्य रखो श्वेत वक: सम,
करो कार्य लगन से हरदम,
गज सम तुममें साहस हाँ,
डर का तनिक एहसास ना,
पूर्ण बनो तुम अब ऐसे,
सर्वस्व समाये तुझमें जैसे।
© Mr. Busy