...

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हँसता खेलता चेहरा...
हँसता-खेलता चेहरा बाहर और दिल अंदर से रोता है,
कहते है हम कितना सा और मन में कितना कुछ होता है।
रूक जाता है मन‌ का हारा, पर रूकता ना मन का खेला है,
भीड़ से टकराकर भी, रहता ये मन क्यूं अकेला है,
बातों का तो बांध बंधा है पर दिल का दरिया यूंही बहता है,
पागल है मन, सब का दुखड़ा सुन लेता है, मगर खुद का तो कह ना पाता है,
रखता है यूं तो मन सबका पर ना जाने क्यूं अब सबको मन में रख ना पाता है!!!!
© Rajat