...

8 views

जनम दिन ये मेरा।
अबके जनम दिन।

हर बार की तरह आकर इस बार भी गुजर गया।
हां मगर अब उम्र का, चालीसवां साल लग गया।

गुजरे वक्त में आंखों से कुछ मंजर गुजर गए।
कुछ बिखरे सपने, और कुछ बंजर संवर गए।
कुछ टूट गए रिश्ते, कुछ गैर ही फरिश्ते हो गए।
कहीं छूट गईं मंजिल, कहीं खुद राह चलते खो गए।
कुछ उम्र के पड़ाव पर दिल भी थक गया।
हां अब उम्र का चालीसवां साल लग गया।

जिनसे थीं बहुत शिकायत मन माफ़ करने लगा।
सारे गिले शिकवे दिल खुद ही साफ करने लगा।
जिंदगी अब पास ही अंतिम छोर पर मुस्का रही।
जीत ली है किस्मतों से जंग ज्यों समझा रही।
जो हुआ भला हुआ सब होकर यहीं सिमट गया।
अब मगर ये उम्र का, चालीसवां साल लग गया।

बच्चे बड़े हुए, कद में सर से ऊपर खड़े हुए।
झांक रहे हैं माथे पर कुछ बाल पके अधपके हुए।
चेहरे से रंगत हवा हुई,झुर्रियां मेरे साथ हंस रहीं।
थोड़ा सा दर्द है कमर में, कभी हरारत बढ़ रही।
दांत कमजोर हो चले आंखों पर चश्मा लग गया।
खुश हूं कि अब उम्र का चालीसवां साल लग गया।
© रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"